BAUDH DHARM KE SIDDHANT IN HINDI बौद्ध धर्म के सिद्धांत तथा ज्ञान दर्शन – इस लेख में बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांत (BAUDH DHARM) के बारे में बताया गया है। मुलत: प्रतीत्यसमुत्पाद का बौद्ध दर्शन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रहा है, जिसके आधार पर अन्य सिद्धांतों की व्याख्या की जाती है ।
बौद्ध धर्म के सिद्धांत तथा ज्ञान दर्शन
यहाँ पढ़े बौद्ध धर्म के सिद्धांत तथा ज्ञान दर्शन – क्या आप जानते हैं बौद्ध दर्शन के मुख्य सिद्धांत तत्वमीमांसा और धर्मशास्त्रीय ना होकर मनोवैज्ञानिक है। लेकिन बुद्ध की मृत्यु के बाद उनके अनुयाई थेरवाद(हीनयान) और महायान के बीच प्रतिद्वंद रह गया। और बौद्ध धर्म के अनुयाई सूक्ष्म तत्वमीमांसिय तर्को में उलझ कर रह गए। 100 साल बाद द्वितीय संगीतियां में बड़ा विवाद हुआ। और महासंघियो ने संघ की क्रिया शैली तथा कुछ निश्चित सैद्धांतिक मतभेदों के चलते अपना संप्रदाय पृथक कर लिया।
बौद्ध दर्शन तीन मूल अधिकार
Baudh Dharm in Hindi: बौद्ध दर्शन तीन मूल सिद्धांत पर आधारित माना गया है जो मूल सिद्धांत है – अनीश्वरवाद सिद्धांत, अनात्मवाद सिद्धांत, क्षणिकवाद सिद्धांत, यह दर्शन पूरी तरह से यथार्थ में जीने की शिक्षा देता है।
बुद्ध की शिक्षाओं का प्रमुख प्रतिफल माध्यमिक संप्रदाय के रूप में आता है। इसका शाब्दिक अर्थ बुद्ध द्वारा उपदेशित मध्यम मार्ग है। क्लिक से पढ़े – बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग क्या है
अनीश्वरवाद सिद्धांत
बौद्ध धर्म का अनीश्वरवाद कहता है कि – बुद्ध ईश्वर की सत्ता नहीं मानते क्योंकि दुनिया प्रतीत्यसमुत्पाद (प्रत्यसों से उत्पत्ति का नियम), अर्थात कारण कार्य की श्रृंखला है। इसे भावचक्र भी कहते है, जिन्हें 12 अंगों में बांटा गया है ।
उनका कहना है आत्मा जैसी कोई चीज नहीं होती। यह जगत स्वयं संचालित है और स्वयं शासित है। अतः इस ब्रह्मांड को कोई चलाने वाला नहीं है ना ही कोई उत्पत्ति करता, क्योंकि उत्पत्ति कहने से अंत का भान होता है। तब ना कोई आरंभ है ना अंत।
12 भागों को द्वादश निदान भी कहा गया है, इन कड़ियों के द्वारा ही संसार की सत्ता प्रमाणित होती है। वे बारह कड़ियां निम्नलिखित हैं – अविद्या, संस्कार, विज्ञान, नामरूप, शडायतन, स्पर्श, वेदना, तृष्णा, उपादान, भव जाति जरामरण है।
अविद्या को समस्त दुःखों का मूल माना गया है। अविद्या से ही संस्कार, संस्कार से विज्ञान, विज्ञान से नामकरण, नामकरण से शडायतन, शडायतन से स्पर्श, स्पर्श से वेदना, वेदना से तृष्णा, तृष्णा से उत्पादन, उत्पादन से भव, भव से जाति, जाति से जरा, जरा से मरण की उत्पत्ति होती है।
अनात्मवाद सिद्धांत
बौद्ध धर्म में अनात्मवाद का सिद्धांत कहता है, कि अनात्मवाद का यह मतलब नहीं कि सच में ही आत्मा नहीं है जिसे लोग आत्मा समझते हैं वह चेतना का अविच्छिन्न प्रवाह है। यह प्रवाह कभी भी बिखर कर जड़ से खत्म हो सकता है और कभी भी अंधकार में लीन हो सकता है।
स्वयं के होने को जाने बगैर आप आत्मवान नहीं हुआ जा सकता। निर्वाण की अवस्था में ही स्वयं को जाना जा सकता है। मरने के बाद आत्मा महासुसुप्ति में खो जाती है। वह अनंत काल तक अंधकार में पड़ी रह सकती है, या तक्षण ही दूसरा जन्म लेकर संसार के चक्र में फिर से शामिल हो सकती है। अतः आत्मा तब तक नहीं जब तक कि बुद्धत्व घटित ना हो। अतः जो जानकार हैं वही स्वयं के होने को पुख्ता करने के प्रति चिंतित हैं।
क्षणिकवाद(क्षणभंगवाद) सिद्धांत
क्षणिकवाद का सिद्धांत कहता है कि वस्तु निरंतर परिवर्तनशील होता रहता है। इस ब्रह्मांड में सब कुछ क्षणिक और नश्वर है, कुछ भी स्थाई नहीं है। सब कुछ परिवर्तनशील है। यह शरीर और ब्रह्मांड उसी तरह से है। जैसे कि घोड़े पहिए और पालकी के संगठित रूप को रथ कहते हैं। और इन्हें अलग करने से रथ का अस्तित्व नहीं माना जा सकता।
इन तीन सिद्धांत पर आधारित ही बौद्ध दर्शन की रचना हुई । इन तीन सिद्धांतों पर आगे चलकर थेरवाद एवं महायान वैभाषिक , सौत्रान्त्रिक संप्रदाय, माध्यमिक का शुन्यवाद संप्रदाय, बौद्ध संप्रदायों की तत्व मीमांसा दृष्टि, योगाचार (विज्ञानवाद) स्वतंत्र योगाचार्य का दर्शन गढ़ा गया। इस तरह बौद्ध धर्म की दो प्रमुख संप्रदायों के कुल छह उपसम्प्रदाय बने इन सब का केंद्रीय दर्शन रहा प्रतीत्यसमुत्पाद।
बौद्ध दर्शन का तत्व मीमांसा क्या है
बौद्ध दर्शन तत्व मीमांसा जगत के विषय में कहा है कि जो कुछ मौजूद है, जगत में जो वास्तविक है, उस वस्तु का अध्ययन तत्व मीमांसा कहलाता है। उसे सत्ता कहते हैं। चार सत्य, अष्मार्ग , पंचशील, त्रिपिटक, प्रतीत्यसमुत्पाद अव्याकृत प्रश्नों पर बुद्ध का मौन और निर्वाण है।
इस बारे में उनका स्पष्ट कहना था कि जीव- जगत और आत्मा- परमात्मा के विषय में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता और मनुष्य जीवन को उन्नत बनाने और निर्माण प्राप्ति में इनके ज्ञान से कोई सहायता भी नहीं मिलती और इन पर विचार करना व्यर्थ है। ज्ञान मीमांसा एवं तत्व मीमांसा और मूल्य एवं अचार मीमांसा को, यदि हम सिद्धांतों के रूप में पूर्णबद्ध करना चाहे तो लिखित रूप में कर सकते हैं –
बौद्ध दर्शन का तत्व मीमांसा के बारें में कहा जाता है – यह ब्रह्मांड परिणामशील है यह बाह्य जगत और मानसिक जगत दोनों की सत्ता है आत्मा परमात्मा की अध्यात्मिकता सत्ता नहीं है मनुष्य स्कंधों का संघात मात्र है और मनुष्य का विकास बाह्य एवं आंतरिक क्रियाओं द्वारा होता है मनुष्य जीवन का अंतिम उद्देश्य निर्वाण की प्राप्ति है निर्वाण के लिए अष्टांग मार्ग आवश्यक है राजा का मूल कर्तव्य प्रजा का पालन आर्य सत्य मार्ग पर चलाना हैे अष्टांग मार्ग पर चलने के लिए त्रिरत्न का पालन आवश्यक है।
सारांश बौद्ध धर्म के सिद्धांत BAUDH DHARM KE SIDDHANT
ई पू छठी सदी के मध्य महात्मा बुद्ध का आविर्भाव इतिहास की एक अविस्मरणीय घटना है। इन्हीं के आचार विचार बौद्ध धर्म के केंद्रीय तत्व अष्टांगिक मार्ग ने तत्कालीन समाज यहां तक कि विश्व के दर्जनों देशों पर क्रांतिकारी प्रभाव डाला था।
महात्मा बुद्ध का प्रधान उद्देश्य दुखाग्रस्त मानव को मुक्ति पथ पर उन्मुख करना तथा भेदभाव से पार करना रहा। मानवीय संवेदना का प्रसारण व्यक्ति जीवन में उचित जीवन मूल्यों का स्थान रहा। भगवान बुद्ध ने अपने अष्टांगिक मार्ग से तत्कालीन समाज में महान क्रांति उपस्थित की।
बौद्ध धर्म क्या कहता है
बुद्ध के द्वारा स्थापित बौद्ध धर्म व्यवहारिक है भगवान बुद्ध का मुख्य उद्देश्य दुख से छुटकारा पाना था। उन्होंने अमूर्त तत्वमीमांसिय तर्कों पर बल नहीं दिया। बुद्ध ने कहा है कि ज्ञान उतना ही नहीं है जितना प्रवचनों के माध्यम से दिया गया है।
निर्वाण क्या है?
निर्वाण का शाब्दिक अर्थ होता है बुझा हुआ। लालच, धृणा या मृत्यु की अग्नि से मुक्ति मिलना ही निर्वाण कहलाता है। तथागत निर्माण के लिए तत्वज्ञान के जटिल मार्ग पर चलने की शिक्षा कभी नहीं देते। प्रत्यूष तत्वज्ञान के विषय प्रश्नों के उत्तर में मौनावलम्बन ही श्रेष्यकर समझते हैं। अष्टांगिक मार्ग पर चलने से प्रत्येक व्यक्ति अपने दुखों का नाश कर निर्वाण प्राप्त कर लेता है।
बौद्ध धर्म के चार मूल सिद्धांत क्या है?
चार आर्य सत्य है – दुख का सत्य है, दुख के कारण का सत्य हैं, दुख के अंत का सत्य है और उस मार्ग का सत्य है जो दुख के अंत की ओर ले जाता है।
प्रश्न बौद्ध ज्ञान के 3 घटक है
विज्ञानवादियों के अनुसार ज्ञान के 3 घटक होता है – ज्ञाता, श्रेय और विज्ञान में से केवल विज्ञान ही यथार्थ है तथा अन्य दो विज्ञान की अभिव्यक्ति भर है। अतः विज्ञान बाद के अनुसार चेतना और चेतना की वस्तु एक ही है। जैसे स्वप्न में ज्ञाता बाह्य वस्तुओं का निर्माण करती है वैसे ही जागृत अवस्था में चेतना वस्तुओं का निर्माण करती है।
यह भी कहा जा सकता है कि एक ही वस्तु विभिन्न व्यक्तियों को विभिन्न प्रकार से दिखाई पड़ती है। योगाचार्य के अनुसार यह सभी तर्क विज्ञान बाद की सिद्धि के लिए पर्याय नहीं है क्योंकि ज्ञाता का ज्ञान आत्मनिष्ठ होते हुए भी वस्तुनिष्ठ हो सकती है।
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