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BUDDHA ASTHI KALASH

BUDDHA ASTHI KALASH – बौद्ध धर्म अस्थि कलश विभाजन के बारें में यहाँ जाने

BUDDHA ASTHI KALASH – बौद्ध धर्म अस्थि कलश विभाजन के बारें में यहाँ जाने – कुशीनगर में भगवान बुद्ध की मृत्यु हुई जिसे महापरिनिर्वाण कहते हैं I गौतम बुद्ध की मृत्यु 483 ई . में उस समय उनकी उम्र 80 वर्ष थी। कुशीनगर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक शहर है ।

बौद्ध ग्रंथों के मुताबिक महात्मा बुद्ध की मृत्यु ककुत्था नदी को पार करने के बाद कुछ दूर जाने के उपरांत कुशीनगर नामक वन क्षेत्र में हुई । उनके निधन के बाद महापरिनिर्वाण स्थल पर स्तूपो का निर्माण करवाया गया। इनके द्वारा जो कहे गए अंतिम शब्द थे वो ये रहें-

देखो, हे भिक्षुओं यह मेरी तुम्हें अंतिम सलाह है। दुनिया में सभी घटक परिवर्तनशील है। उन्होंने उपदेश और शिक्षा दिए, जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ।

BUDDHA ASTHI KALASH
BUDDHA ASTHI KALASH

भगवान बुद्ध के अस्थि विभाजन – बौद्ध धर्म अस्थि कलश विभाजन

भगवान बुद्ध के अस्थि विभाजन / बौद्ध धर्म अस्थि कलश विभाजन – भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके अनुयाई राजाओं ने अस्थि प्राप्त करने के लिए कुशीनगर के मल्लो से अस्थि प्राप्त करना चाहा कुशीनगर के मल्लो ने कहा भगवान का महापरिनिर्वाण हमारे क्षेत्र में हुआ है

इसीलिए उनकी अस्थि पर सिर्फ हमारा अधिकार है हम इस पर स्तूप बनाएंगे तब लड़ाई झगडे की नौबत आ गई थी। तब द्रोण नामका एक ब्राह्मण ने बंटवारे का सुझाव दिया, 8 भागों में अस्थि विभाजन हुआ मगध नरेश अजातशत्रु, वैशाली के लिच्छवी, कपिलवस्तु के शाक्य, अल्लकप्प के बुलिय, रामग्राम के कोलिय, वेठ द्विप के बम्हण, और पावा के मल्लों ने भगवान के शरीर धातु की पूजा करने के लिए स्तूप का निर्माण करवाया

भगवान बुद्ध के आठ स्तूप

भगवान बुद्ध के अवशेष/अस्थि पर बने आठ स्तूप : भगवान बुद्ध निर्वाण के बाद उनकी अस्थियों को 8 हिस्सों में बांटा गया । और इनका स्तूप बनाया गया। स्तूप आमतौर पर गुंबद के आकार की संरचना (जैसे कि एक मिट्टी का दफन टीला) जो बौद्ध मंदिर के रूप में काम करती है। यह नीचे से एक गोलाकार आधार पर एक अर्ध गोलाकार गुंबद बना होता है। जिसे हर्षिका कहा जाता था। इसे आमतौर पर एक समाधि स्मारक माना जाता है।

वो 8 मुख्य भगवान बुद्ध के आठ स्तूप – कुशीनगर पावागढ़ वैशाली कपिलवस्तु रामग्राम अल्लकल्पा राजगृह और बेटद्वीप (वेथपीडा) में बने।

BUDDHA ASTHI KALASH VIBHAJAN IN HINDI

भगवान बुद्ध अस्थि विभाजन और अवशेष BUDDHA ASTHI KALASH VIBHAJAN IN HINDI : अस्थि विभाजन के बाद पिप्पलिवन के मौर्यों द्वारा अस्थि अवशेष प्राप्त करने के लिए दूत भेजा परंतु आखिरकार उनको चिता के बुझे आग अवशिष्ट प्राप्त हुई।

इस प्रकार भगवान के अस्थि अवशेष पर बने आठ स्तूप और एक तुम्ब स्तूप तथा एक अङ्गार स्तूप मिलाकर दस स्तूप का निर्माण हुआ था। बाद में देवानांप्रिय प्रियदर्शी अशोक ने आठ स्तूपों में से एक रामग्राम के स्तूप को छोड सात स्तूपो में से धातु निकाल कर हजारो (84000) स्तूपो का निर्माण किया।

पुष्यमित्र मौर्य, मौर्य साम्राज्य का बिगड़ैल अंतिम राजा था जो दूसरा सम्राट असोक बनने के चक्कर में सम्राट असोक के बनवाये 80 हज़ार स्तूपों को तोड़ने गया और बौद्ध भिक्खुओं से पंगा ले लिया नतीजा ये हुआ की स्तूप और महाविहारों के रक्षक बौद्ध भिक्खुओं को मारने की चक्कर में ख़ुद मारा गया।

ये बात असोकावदान में लिखी है, जो क़रीब 3RD to 5TH सेंचुरी की मानी जाती है चीनी इतिहास में है। उन में कुछ स्तूप बचे है, उन बचे स्तूपो में भगवान के अस्थि आज भी सुरक्षित हैं। बुलेट प्रूफ दरवाजे के अंदर रखी है भगवान की बुद्ध की अस्थियां। महाबोधि सोसाइटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रमोहन पाटिल ने बताया कि इस स्तूप की 2 चाभियां हैं। एक कलेक्टर और दूसरी महाबोधि सोसाइटी के पास रहती है।

धमेख स्तूप कहाँ स्थित है

भारत में जो स्तूप है वे धमेख स्तूप कहलाता है। धमेख स्तूप सभी बौद्ध स्तूपों के बीच विशेष महत्व रखता है क्योंकि वह पवित्र बुद्ध की गद्दी माना जाता है, जहां भगवान बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान प्राप्त करने के बाद अपने पहले धर्मोंपदेश का प्रचार किया था । यह उत्तर प्रदेश राज्य में वाराणसी के पास सारनाथ में स्थित है। यह भारत में सबसे प्रमुख बौद्ध संरचनाओं में से एक है।

धमेख स्तूप का निर्माण 500CE में महान राजा सम्राट अशोक द्वारा 249BCE में शुरू की गई जो कि पुरानी संरचना को बदलने के लिए किया गया था। – बौद्ध धर्म में 5 तरह के स्तूप का निर्माण हुआ है। बौद्ध धर्म में 5 तरह के स्तूप – शारीरिक स्तूप परिभोगिका स्तूप उद्देशिका स्तूप प्रतीकात्मक स्तूप मनौती स्तूप

इनमें शारीरिक स्तूप में गौतम बुद्ध और आध्यात्मिक विभूतियों के अवशेषों को सुरक्षित रखा गया है। आपको बता दें कि स्तूप स्मृति का प्रतीक होता है। कपिलवस्तु के स्तूप में से मिले भगवान के धातु आज भी नेशनल म्युजियम, दिल्ली में सुरक्षित है। अनेक बौद्ध देशों में अस्थि बौद्ध विहार में सुरक्षित है.

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