DIVORCE PROCESS IN HINDI – तलाक के नये नियम 2024 में क्या है जाने DIVORCE KE LIYE KAISE APPLY KARE DIVORCE KAISE LE
शादी ख़ुशी से भरा पल है लेकिन शादी से छुटकारा यानी तलाक आसान नहीं होता, क्योकि शादी के बाद तलाक लेने के लिए बहुत से क़ानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, फिर कही जाकर तलाक तलाक मिलता है। तलाक लेने के लिए सही कारण का होना जरुरी है फिर ही कही जाकर यह मुमकिन हो सकता है
अगर कोई व्यक्ति ऐसी परस्थिति में तलाक लेना चाहे, तो भारत का संविधान तलाक लेने की इजाजत देता है। तो तलाक लिया जा सकता है,
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत तलाक के कारण बताये गए है:- व्यभिचार क्रूरता परित्याग धर्म परिवर्तन पागलपन। कुष्ठ रोग छूत की बीमारी वाले यौन रोग सन्यास तथा सात साल तक गुमशुदगी या जीवित होने की कोई खबर न होने पर
महिलाओ को तलाक लेने का अधिकार – DIVORCE PROCESS IN HINDI
अगर शादी नाकाम किसी भी वजह से है ऐसे में तलाक लेना ही सही होगा किसी भी रिश्ते में बंधकर रहना सही नहीं माना जाता है ऐसे में किसी रिश्ते में बंधकर रहना, उससे अच्छा तलाक लेना ही सही होगा जहा आपकी कोई इज्जत एंव अहमियत नहीं है आगे जाने महिलाओं के तलाक के अधिकार:-
जब पति पत्नी को दो साल तक छोड़ देता है ऐसे स्थिति में पत्नी को तलक लेने का अधिकार है। अगर पत्नी ने तलाक ले लिया हो लेकिन दूसरी शादी नहीं की हो ऐसे स्थिति में एलिमिनी एंव मेंटेनेंस(गुजारा भत्ता) तलाकशुदा पत्नी प्राप्त कर सकती है।
अगर किसी व्यक्ति को ऐसे कोई समस्या या छुआछुत बीमारी है जिसका इलाज संभव न हो ऐसे स्थिति में महिला तलाक ले सकती है। अगर कोई व्यक्ति महिला के मर्जी के खिलाफ जाकर धर्मपरिवर्तन करता है ऐसे में महिला को तलाक लेने का अधिकार है।
एकतरफा तलाक के नये नियम – DIVORCE PROCESS IN HINDI
रजामंदी से तलाक लेने की प्रक्रिया काफी आसान है लेकिन एकतरफ़ा तलाक के नियम भारत में शख्त है ऐसे में कुछ नियम बनाये गए है अगर आप ऐसी स्थिति में है तो एकतरफ़ा तलाक लिया जा सकता है:-
व्यभिचार: पति एंव पत्नी दोनों से कोई भी एक अपने पार्टनर को धोखा दे रहा हो और किसी अन्य तीसरे व्यक्ति से शारीरिक रिश्ता बना रहा है ऐसे में दूसरा पक्ष व्यभिचार को आधार बनाकर तलाक ले सकता है लेकिन इसके लिए आपको व्यभिचार को कोर्ट में साबित करना होगा
हिंसा: महिला एंव पुरुष दोनों में कोई एक शारीरिक एंव मानसिक हिंसा का शिकार है। ऐसे में इस आधार पर भी तलाक लिया जा सकता है। इस स्थिति में आपको कोर्ट में साबित करना होगा कि आपके साथ हिंसा होती है।
धर्म परिवर्तन: अगर पति पत्नी दोनों शादी से पहले अलग अलग धर्म से ताल्लुक रखते थे और दोनों ने शादी करते समय एक दुसरे के धर्म को स्वीकार किया हो. लेकिन शादी के बाद पत्नी एंव पति में कोई भी एक धर्म परिवर्तन को मजबूर करता है। ऐसे में पत्नी एंव पति दोनों में कोई भी एकतरफा तलाक ले सकता है।
संन्यास: पति एंव पत्नी में से कोई भी एक मैरिज जीवन को छोड़कर संन्यास ले लेता है ऐसे में कोर्ट दुसरे पक्ष को एकतरफा तलाक दे सकता है।
गुमशुदा: पति एंव पत्नी दोनों में से कोई भी एक, 7 साल तक गुमशुदा हो और लौटकर नहीं आये ऐसी स्थिति में एकतरफा तलाक लिया जा सकता है।
नपुंसकता: नपुंसकता भी एक ऐसा कारण माना जाता है जिसके आधार पर एकतरफा तलाक लिया जा सकता है।
हिन्दू तलाक के नये नियम – तलाक के नये नियम
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत पति एंव पत्नी दोनों को एक से अधिक आधार पर तलाक के लिए डिक्री लेकर अपने शादी को भंग करने का अधिकार है।
जिसे विशेष रूप से धारा 13 में वर्णित किया गया है। विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 28 और तलाक अधिनियम, 1869 की धारा 10A भी आपसी सहमति से तलाक का प्रावधान करती है।
पति एंव पत्नी एक वर्ष या उससे भी अधिक समय से एक दुसरे के साथ न रह रहे हो। पति और पत्नी एक दुसरे के साथ रहने में असमर्थ हो ऐसे स्थिति में भी तलाक लिया जा सकता है।
जब पति और पत्नी दोनों ने परस्पर सहमति व्यक्त की है कि विवाह पूरी तरह से टूट गया है और इसलिए विवाह को भंग कर देना चाहिए।
आपसी सहमति से तलाक कैसे ले
मोहम्मद नजीर वकील साहब के मुताबिक़ “अग्रेजो के समय से पहले हिन्दू विवाह एक धार्मिक संस्कार था” जिसमे अलग एंव तलाक होने का कोई प्रावधान नहीं था। क्योकि हिन्दू धर्म के अनुसार शादी कई जन्मो का रिश्ता माना जाता था। लेकिन बाद में अंग्रेजो के समय में ही मैरिज एक्ट 1955 में तलाक का प्रावधान जोड़ा गया।
इस मैरिज एक्ट के अनुसार हिन्दू धर्म से ताल्लुक रखने वाला व्यक्ति केवल एक पत्नी रख सकता है। अगर कोई व्यक्ति दूसरी शादी करना चाहता है। तो उसे अपने पहले पत्नी से तलाक लेना होगा
आपसी सहमति से तलाक के नियम
आपसी सहमति से तलाक के नियम व् शर्ते है जब पति एंव पत्नी एक साल से भी अधिक समय से एक दुसरे के साथ नहीं रहते हो। ऐसे में आपसी सहमति से तलाक प्रक्रिया को पूरा कर सकते है
विवाह की समय सीमा 1 वर्ष ख़त्म होने के बाद ही आपसी सहमति से तलाक की याचिका दायर करें तलाक की पहली याचिका दायर करने के बाद 6 महीने का समय दिया जाता है इस दौरान पत्नी व् पति दोनों में से कोई भी तलाक याचिका वापस चाहे तो लिया जा सकता है 6 महीने के समय को कम करने के लिए एप्लीकेशन दिया जा सकता है।
कोर्ट सभी पहलु को जांच करेगा, उचित लगने पर समय सीमा कम किया जा सकता है। पहली याचिका डालने के बाद 18 महीने के अंदर दूसरी याचिका डालनी पड़ती है अगर 18 महीने से ज्यादा वक्त बीत चूका हो तो फिर से पहली याचिका ही डालनी पडेगी। अगर दूसरी याचिका के वक्त कोई एक पक्ष केस वापस लेता है तो उस पर जुर्माना लगती है।
मुस्लिम तलाक के नियम
मुस्लिम तलाक के नए नियम: शिया लॉ/सुन्नी लॉ/सरियत/मुस्लिम लॉ में आपसी सहमती से जो तलाक होता वह सरियत लॉ के हिसाब से होता है।
सरियत/म्यूच्यूअल तलाक दो तरह से होता है “पहला होता है खुलानाम और दूसरा होता है मुबारत” खुलानाम हमेसा पत्नी के तरफ से किया जाता है। तलाक के समय पति को मेहर की रकम भी अदा करनी पड़ती है।
मेहर शादी विवाह के समय तह किया हुआ एक अमाउंट/जहेज होता है। जो विवाह के समय पति अपनी पत्नी को देने का वादा करता है। मुस्लिम लॉ में तलाक के लिए यह एक फाइनेंशियल कंडीशन है। मुस्लिम तलाक/मुबारत के नियम के अनुसार पति/पत्नी के आपसी सहमती से तलाक लिया जाता है।
नियम व् शर्ते: तलाक के नये नियम
तलाक का ऑफर करने के बाद जो पति/पत्नी/दुसरा पक्ष जो है उसे तलाक के ऑफर को स्वीकार करना होगा अगर नहीं करते है तो ऐसे में तलाक मान्य नहीं होगा। अगर पति ने तलाक माँगा और पत्नी ने स्वीकार कर लिया ऐसे में तलाक हो जाएगा। मुबारत एंव खुलानामा दोनों में ही इद्दत पीरियड महत्वपूर्ण होता है इद्दत पीरियड 3 महीने का होता है जब इद्दत पीरियड 3 महीने पुरे हो जाते है तो ऐसे में मुस्लिम लॉ के अनुसार तलाक हो जाता है।
एक बार तलाक हो जाने के बाद मुस्लिम लॉ के अनुसार दुबारा से तलाक को वपास नहीं लिया जा सकता है। इस प्रकिया में कानून/कोर्ट कही भी शामिल नहीं होता है यह सरियत/मुस्लिम लॉ के अनुसार किया जाता है।
उपरोक्त तलाक के नियम कोर्ट मैरिज करने पर लागु नहीं होता है मुस्लिम पति/पत्नी ने कोर्ट मैरिज की है तो उनके लिए यह नियम मान्य नहीं है। कोर्ट से जो भी मैरिज होती है वह स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत किया जाता है
इसलिए तलक भी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत ही होगा। अगर पति एंव पत्नी को एक दुसरे से कुछ लेना/देना है – फाइनेंसियल से सम्बन्धित, इत्यादि ऐसे कंडीशन में दोनों ही मुबारत एंव खुलानामा मान्य नहीं होगा क्योकि इसके लिए कन्टेनसन तलाक का प्रोविजन है। आगे पढ़े मुस्लिम निकाह का तरीका
भारत में तलाक लेने की प्रक्रिया क्या है
भारत में तलाक लेने की प्रक्रिया की नियम व् शर्ते सबसे पहले दोनों पक्षों को एक संयुक्त याचिका, कोर्ट में दायर करना होगा एंव दोनों पक्षों का हस्ताक्षर याचिका पर होना जरुरी है।
अब कोर्ट में दोनों पक्षों का संयुक्त बयान लिया जाएगा जिसमे पति पत्नी को आपसी मतभेद के बारे में जानकारी देनी होगी और सही वजह बताना होगा कि इस वजह/कारण से साथ नहीं रह सकते। इस बयान में बच्चों और संपत्तियों के बंटवारे के बारे में भी समझौता होता है। दोनों पक्षों का बयान पूरा होने के बाद कोर्ट के सामने दोनों पक्षों से पेपर पर हस्ताक्षर किए जाते हैं।
अब दोनों पक्षों को सुलह करने एंव मन में बदलाव आने के लिए 6 महीने का समय दिया जाता है। अगर इन प्रस्ताव के 6 महीने में दोनों पक्षों के बीच सहमति नहीं बनती है तो अंतिम सुनवाई के लिए यानि दूसरे प्रस्ताव के लिए उपस्थित होंगे।
अगर दूसरा प्रस्ताव 18 महीने की अवधि में नहीं लाया गया तो अदालत तलाक के आदेश को पारित नहीं करेगी. इसमें एक पक्ष आदेश के पारित होने से पहले किसी भी समय अपनी सहमति वापस भी ले सकता है।
ऐसे मामले में अगर पति/पत्नी के बीच कोई पूर्ण समझौता न हो या अदालत पूरी तरह से संतुष्ट न हो तो तलाक के लिए आदेश नहीं दिया जा सकता है। अगर अदालत को ठीक लगे, तो अंतिम चरण में तलाक का आदेश दिया जाता है।
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