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DHAMMA CHAKRA PRVATAN - धम्म चक्र क्या है

DHAMMA CHAKRA PRVATAN – धम्म चक्र क्या है यहाँ जाने बौद्ध धर्म के बारें में जानकारी

DHAMMA CHAKRA PRVATAN धम्म चक्र क्या है यहाँ जाने बौद्ध धर्म के बारें में जानकारी – धम्मचक्र एक पाली शब्द है जो धर्मचक्र संस्कृत शब्द से उत्पन्न हुआ है। यह शब्द धर्म के चक्र को संदर्भित करता है जिसे भगवान बुद्ध ने अपने प्रथम धर्म सत्र के समय विस्तारित किया था। इसे “धर्म का चक्र” या “धर्म का विक्रमी चक्र” भी कहा जाता है।

धम्मचक्र प्रवर्तन भगवान बुद्ध द्वारा अपने पहले पाँच शिष्यों के समक्ष धर्मचक्र के सार्वजनिक रूप से प्रवेश को संदर्भित करता है। यह उनके अधिकारियों, राजा और अन्य लोगों के समक्ष हुआ था। धम्मचक्र प्रवर्तन को भगवान बुद्ध के धर्म शिक्षा का एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है।

DHAMMA CHAKRA PRVATAN - धम्म चक्र क्या है
DHAMMA CHAKRA PRVATAN धम्म चक्र क्या है

धम्म का कानून क्या कहता है – धम्म चक्र क्या है

बुद्ध द्वारा सिखाए गए धम्म सत्य को प्रकट करता है। यह जीवन जीने का एक तरीका देता है जो उन्हें ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है। अष्टांगिक मार्ग से होकर गुजरता है। धम्मचक्र का अर्थ है कानून का पहिया।

बौद्ध धर्म का सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक है -धम्मचक्र , जो सारनाथ के जंगल में बुद्ध के पहले उपदेश को दर्शाता है जहां उन्होंने बौद्ध कानूनी को गति दी थी। धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस भारतीय बौद्धों का एक प्रमुख उत्सव है ।

दुनियाभर के लाखो बौद्ध अनुयाई इकट्ठा होकर हर साल अशोक विजयदशमी एवं 14 अक्टूबर के दिन इसे मुख्य रूप से महाराष्ट्र में मनाते हैं। आरंभिक काल से ही पराया सभी बौद्ध मंदिरों मूर्तियों और शिलालेखों पर धर्म चक्र का प्रयोग अलंकरण के रूप में किया गया मिलता है। धर्म चक्र बौद्ध धर्म का प्रमुख प्रतीक है।

धर्म चक्र में 1008 आरे होते हैं। और इस समुदाय के लोगों का मानना है कि धर्म चक्र को घुमाने मात्र से दुखों और पापों से मुक्ति मिल जाती है। बुद्ध द्वारा सारनाथ में पंचवर्षीय भेजो को दिए गए उपदेश को धर्म चक्र जाता है

धम्मचक्र का प्रतिष्ठान भगवान बुद्ध के पहले सत्र के समय हुआ था। इस समय पर, उन्होंने अपने पहले पाँच शिक्षापद (पाली में “धम्म” या “धर्म” के रूप में ज्ञात) का विवरण किया, जिन्हें उन्होंने अपने शिष्यों के समक्ष प्रस्तुत किया।

पाँच शिक्षापद बुद्धिस्म के मूल धरोहर में से एक हैं और इन्हें धर्म के चक्र के रूप में संबोधित किया जाता है। धम्मचक्र पारम्परिक रूप से बुद्धिस्म में एक महत्वपूर्ण प्रतीक के रूप में उपस्थित है और इसे धर्म के प्रवर्तक भगवान बुद्ध के शिक्षाओं का प्रतीक भी माना जाता है।

DHAMMA CHAKRA PRVATAN – धम्मचक्र के पाँच शिक्षाप्रद

यहाँ पढ़े धम्मचक्र के पाँच शिक्षाप्रद DHAMMA CHAKRA PRVATAN – धम्मचक्र के पाँच शिक्षापद निम्नलिखित हैं धम्मचक्र के इस प्रतिष्ठान से पहले, भगवान बुद्ध ने बोधगया के जूजकामान वन में महाबोधि पेड़ के नीचे अपने पाँच शिक्षापद दिए थे। धम्मचक्र प्रवर्तन में, भगवान बुद्ध ने अपने पाँच पहले शिक्षापदों का विवरण किया जो निम्नलिखित हैं –

धर्ममच्छ पवत्ताना: सत्य का चक्र पलटना सत्य की ओर प्रवृत्ति करना।

संघमच्छ पवत्ताना: सम्मिलन का चक्र पलटना सम्मिलन या संघ का चक्र पलटना, दोस्ताना वातावरण बनाना।

अज्ज्हाय पटिक्खाना: संविधि को पटिखा करना पापों और दोषों को दूर करने के लिए विशेष उपाय अपनाना।

दभ्बंगपुरिसच्चाय: धन्य लोगों की जाँच धन्यता पूर्ण और विभिन्न प्रकार के धन्य लोगों को पहचानने का उपाय।

युग्ग्हं विदित्थि पुरिसच्चाय: समय के साथ जाँच समय के साथ धन्यता के सम्बन्ध में जाँच करने का उपाय।

धम्मचक्र प्रवर्तन के द्वारा, भगवान बुद्ध ने धर्म की महत्वपूर्ण उपादेयता और धर्म के पाँच शिक्षापदों को जीवन में अमल करने के मार्गदर्शन किया। इस प्रवचन में भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों को धर्म के मूल सिद्धांतों, समझदारी, नैतिकता, और सभी प्राणियों के प्रति दया के महत्व का बोध किया। ये पाँच शिक्षापद बुद्धिस्म के मूल धरोहर में से एक हैं और इन्हें धर्म के चक्र के रूप में संबोधित किया जाता है।

धम्मचक्र का महत्व क्या है

DHAMMA CHAKRA PRVATAN – धम्मचक्र प्रवर्तन के इस महत्वपूर्ण प्रवचन ने अपने शिष्यों को – आत्मिक संशोधन, सांसारिक दुःख से मुक्ति, और उच्चतम धार्मीक जीवन के मार्ग पर प्रेरित किया। इस प्रवर्तन के बाद, भगवान बुद्ध के शिष्यों में धर्म के प्रसार की प्रक्रिया शुरू हो गई और धम्मचक्र प्रवर्तन के इस समारोह ने बुद्धिस्म के उदय को प्रारंभ किया।

धम्मचक्र प्रवर्तन भगवान बुद्ध के धर्म और धर्मिक उपदेश के प्रथम सार्वजनिक प्रसार का एक महत्वपूर्ण इतिहासिक घटना है। यह बुद्धिस्म के महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक है। धम्मचक्र प्रवर्तन के बाद, भगवान बुद्ध के पाँच शिष्य – धम्मा, यासस, वास्स, महानाम, आज्ञातकौंडिन्य ने धर्म के प्रसार में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उन्होंने बुद्ध के उपदेशों को अपने जीवन में अमल में लाने के लिए अपने प्रयासों से लोगों को प्रेरित किया। धम्मचक्र प्रवर्तन के इस प्रसार के परिणामस्वरूप, बुद्धिस्म ने भारतीय उपमहाद्वीप में विकास किया और फिर दक्षिण एशिया के अनेक भागों में फैला।

धम्मचक्र प्रवर्तन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भगवान बुद्ध के उपदेशों के प्रसार के लिए एक बड़ी प्रसार-प्रचार की प्रक्रिया का आरम्भ करती है। इससे भगवान बुद्ध के संदेश का विश्वभर में प्रसार होने लगा और लोगों को उसके उपदेशों का ज्ञान हुआ। बुद्धिस्म के शिष्य और अनुयायी धर्म के शिक्षाओं को सभी दिशाओं में फैलाने में सक्रिय रूप से सहायक हुए और भगवान बुद्ध के संदेश का प्रचार और प्रसार उन्होंने कई देशों तक ले जाने में सफलता प्राप्त की।

धर्मचक्र प्रवर्तन दिवस

बुद्धिस्म के प्रसार के साथ ही धम्मचक्र प्रवर्तन की घटना बुद्ध के आध्यात्मिक शिक्षा को एक महत्वपूर्ण इतिहासी घटना भी बना दी। धम्मचक्र प्रवर्तन के माध्यम से, भगवान बुद्ध ने मनुष्यता, करुणा, नैतिकता, और आध्यात्मिकता के मूल सिद्धांतों को प्रस्तुत किया।

इसके प्रभाव से लोगों के चित्त में संशोधन की भावना जाग्रत हुई और उन्हें सांसारिक दुःख से मुक्ति प्राप्त करने का मार्ग दिखाया गया। धम्मचक्र प्रवर्तन की घटना बुद्धिस्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी मोड़ थी, जिससे इस धर्म की प्रसार-प्रचार ने गतिशीलता प्राप्त की।

धम्मचक्र प्रवर्तन ने अनेक लोगों को बुद्ध धर्म में आकर्षित किया और उन्हें धार्मिक जीवन के मार्ग पर आगे बढ़ने का प्रेरणा दिया। इसके अलावा, धम्मचक्र प्रवर्तन का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह धर्म के मूल उपदेशों का एक संक्षेप्त और प्रमुख सारांश है।

धर्ममच्छ पवत्ताना, संघमच्छ पवत्ताना, अज्ज्हाय पटिक्खाना, दभ्बंगपुरिसच्चाय, और युग्ग्हं विदित्थि पुरिसच्चाय जैसे शिक्षापद धर्म के महान सिद्धांतों को संक्षेप्त रूप से प्रस्तुत करते हैं।

इन उपदेशों के अनुसार, व्यक्ति अपने जीवन में सत्य, सम्मिलन, और धर्मिकता के मूल मूल्यों को जीने के लिए प्रेरित होता है। धम्मचक्र प्रवर्तन की घटना ने भगवान बुद्ध के उपदेशों को लोगों के दिलों और दिमाग में स्थायी रूप से स्थापित किया और धर्म को एक समग्र उद्धार किया।

धम्मचक्र प्रवर्तन के उपरांत, धर्म की प्रसार-प्रचार की प्रक्रिया तेजी से बढ़ी और बुद्धिस्म विश्वभर में फैला। इस प्रक्रिया के माध्यम से भगवान बुद्ध के उपदेशों को बिहार, उत्तर प्रदेश, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, थाईलैंड, म्यांमार, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, चीन, जापान और दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य भागों में प्रसारित किया गया।

धम्मचक्र प्रवर्तन घूमने से क्या होता है

धर्मचक्र घूमना बुद्धिस्म में एक महत्वपूर्ण प्रतीकित व्यवस्था है जो धर्मीक अर्थ में है। यह धर्म चक्र अंगुली द्वारा घुमाया जाता है और इसे धर्मीक क्रिया के रूप में सम्बोधित किया जाता है। इसके घूमने का मतलब यह है कि –

धर्मी समुदाय के जीवन में धर्मिकता के मूल सिद्धांतों का अनुसरण करना और उन्हें अपने जीवन के भाग के रूप में अमल में लाने की चक्की भागता रहना है। धर्मचक्र के घूमने का उद्देश्य धर्मीक समुदाय को सदा धर्म के पथ पर चलने और धर्म के उच्चतम मूल्यों का अनुसरण करने के लिए प्रेरित करना है ।

धार्मीक जीवन के स्थिरता, संतुलन और सार्थकता के लिए आवश्यक है। धर्मचक्र के घूमने से धार्मिक समुदाय को धर्म के उच्चतम सिद्धांतों का सदैव स्मरण रहता है और धार्मिकता के मार्ग पर भविष्य में भी अग्रसर रहता है। धर्मचक्र घूमने का इसलिए भी महत्व है क्योंकि धर्म की दर्शनिक अर्थात् अनुष्ठानिक उपासना के प्रतीची सिद्धांतों को समझाता है।

धर्मचक्र के घूमने से धर्मी समुदाय में आत्मविश्वास, साहस, समर्थन और उत्साह का विकास होता है। यह समुदाय अपने जीवन में सत्य, सम्मिलन, और सबके प्रति दया के लिए जीवन जीने के प्रेरक बनते हैं। धर्मचक्र के घूमने से धर्मी समुदाय को धर्म के शांत, सुखी और समृद्ध जीवन का मार्ग प्राप्त होता है।

सम्पूर्ण रूप से, धर्मचक्र के घूमने से धर्मी समुदाय को धर्म के मूल सिद्धांतों का सदैव स्मरण रहता है इससे धर्मी समुदाय को धर्म के उच्चतम सिद्धांतों का अनुसरण करने की प्रेरणा मिलती है।

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