Gorakhpur News In Hindi, Gorakhpur Hindi News, Hindi News, GKP News in Hindi

BUDDHA MUDRA

BUDDHA MUDRA – गौतम बुद्ध ने किस मुद्रा में बैठकर साधना की

BUDDHA MUDRA IN Hindi गौतम बुद्ध ने किस मुद्रा में बैठकर साधना की बुद्ध की 10 मुद्राएं बुद्ध मुद्रा ज्ञान मुद्रा भूमिस्पर्श मुद्रा उत्तरबोधि मुद्रा गौतम बुद्ध की तस्वीर अभय मुद्रा वरद मुद्रा धर्मचक्र मुद्रा

बुद्ध के दस मुख्य उपदेशों को दशम पदार्थ (Dasa Pāramitās) कहा जाता है। ये उनके दिए गए उपदेशों में से चुनिंदा हैं, जो बौद्ध धर्म के आधार बनते हैं। बुद्ध की 10 विभिन्न मुद्राएं एवं हस्त संकेत व ध्यान और उनके अर्थ जानें : भारतीय मूर्तिकला देवत्व का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व करती है, जिसका मूल और अंत, धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।

इसलिए बुद्ध के अनुयायी, बौद्ध ध्यान या अनुष्ठान के दौरान शास्त्र के माध्यम से विशेष विचारों को पैदा करने के लिए बुद्ध की छवि को प्रतीकात्मक संकेत के रूप में इस्तेमाल करते हैं। इस योग की प्राचीन शैलियों में से एक विपश्यना ध्यान की काफी चर्चा होती है। आइए विस्तार से जानते हैं

BUDDHA MUDRA
BUDDHA MUDRA

बुद्ध की 10 मुद्राएं – BUDDHA MUDRA

BUDDHA MUDRA गौतम बुद्ध के विभिन्न 10 मुद्रा निम्नवत है – भूमिस्पर्श मुद्रा, धर्मचक्र मुद्रा, ध्यान मुद्रा, वज्र मुद्रा, वितर्क मुद्रा, उत्तरबोधी मुद्रा, अंजलि मुद्र, वरद मुद्रा, करण मुद्रा, अभय मुद्रा

गौतम बुद्ध ने किस मुद्रा में बैठकर साधना की

यहाँ पर जाने गौतम बुद्ध ने किस मुद्रा में बैठकर साधना की –

भूमिस्पर्श मुद्रा

इस मुद्रा को “पृथ्वी को छूना” (“टचिंग द अर्थ”) भी कहा जाता है जोकि बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति के समय का प्रतिनिधित्व करती है क्योंकि इस मुद्रा से बुद्ध दावा करते हैं कि पृथ्वी उनके ज्ञान की साक्षी है। इस मुद्रा में सीधे हाथ को दायें घुटने पर रखकर हथेली को अंदर की ओर रखते हुए जमीन की ओर ले जाया जाता है और कमल सिंहासन को छूआ जाता है।

धर्मचक्र मुद्रा

धर्मचक्र मुद्रा – इस मुद्रा का सर्वप्रथम प्रदर्शन ज्ञान प्राप्ति के बाद सारनाथ में बुद्ध ने अपने पहले धर्मोपदेश में किया था। इस मुद्रा में दोनों हाथों को सीने के सामने रखा जाता है तथा बायें हाथ का हिस्सा अंदर की ओर जबकि दायें हाथ का हिस्सा बाहर की ओर रखा जाता है।

ध्यान मुद्रा

ध्यान मुद्रा – इस मुद्रा को “समाधि या योग मुद्रा” भी कहा जाता है और यह अवस्था “बुद्ध शाक्यमुनि”, “ध्यानी बुद्ध अमिताभ” और “चिकित्सक बुद्ध” की विशेषता की ओर इशारा करती है। इस मुद्रा में दोनों हाथों को गोद में रखा जाता है दायें हाथ को बायें हाथ के ऊपर पूरी तरह से उंगलियां फैला कर रखा जाता है तथा अंगूठे को ऊपर की ओर रखा जाता है और दोनों हाथ की अंगुलियां एक दूसरे के ऊपर टिका कर रखा जाता है।

वज्र मुद्रा

यह मुद्रा उग्र वज्र के पांच तत्वों, अर्थात् वायु, जल, अग्नि, पृथ्वी, और धातु के प्रतीक को दर्शाती है। इस मुद्रा में बायें हाथ की तर्जनी को दायीं मुट्ठी  में मोड़कर, दायें हाथ की तर्जनी के ऊपरी भाग से दायीं तर्जनी को छूते (या चारों ओर घूमाते) हुए किया जाता हैं।

वितर्क मुद्रा

यह बुद्ध की शिक्षाओं के प्रचार और परिचर्चा का प्रतीक है। इस मुद्रा में अंगूठे के ऊपरी भाग और तर्जनी को मिलाकर किया जाता है, जबकि अन्य उंगलियों को सीधा रखा जाता है। यह लगभग अभय मुद्रा की तरह है लेकिन इस मुद्रा में अंगूठा तर्जनी उंगली को छूता है।

उत्तरबोधी मुद्रा

यह मुद्रा दिव्य सार्वभौमिक ऊर्जा के साथ अपने आप को जोड़कर सर्वोच्च आत्मज्ञान की प्राप्ति को दर्शाती है। इस मुद्रा में दोनों हाथ को जोड़ कर हृदय के पास रखा जाता है।

अंजलि मुद्रा

इसे “नमस्कार  मुद्रा” या “हृदयांजलि मुद्रा” भी कहते हैं जो अभिवादन, प्रार्थना और आराधना के इशारे का प्रतिनिधित्व करती है। इस मुद्रा में, कर्ता के हाथ आमतौर पर पेट और जांघों के ऊपर होते हैं दायां हाथ बायें के आगे होता है, हथेलियां ऊपर की ओर, उंगलियां जुड़ी हुई और अंगूठे एक-दूसरे के अग्रभाग को छूती हुई अवस्था में होते हैं।

वरद मुद्रा

वरद मुद्रा – यह मुद्रा अर्पण, स्वागत, दान, देना, दया और ईमानदारी का प्रतिनिधित्व करती है। इस मुद्रा में दायें हाथ को शरीर के साथ स्वाभाविक रूप से लटकाकर रखा जाता है खुले हाथ की हथेली को बाहर की ओर रखते हैं और उंगलियां खुली रहती है तथा बाये हाथ को बाये घुटने पर रखा जाता है।

करण मुद्रा

करण मुद्रा – यह मुद्रा बुराई से बचाने की ओर इशारा करती है। इस मुद्रा को  तर्जनी और छोटी उंगली को ऊपर उठा कर और अन्य उंगलियों को मोड़कर किया जाता है। यह कर्ता को सांस छोड़कर बीमारी या नकारात्मक विचारों जैसी बाधाओं को बाहर निकालने में मदद करती है।

अभय मुद्रा

यह मुद्रा निर्भयता या आशीर्वाद को दर्शाता है जोकि सुरक्षा, शांति, परोपकार और भय को दूर करने का प्रतिनिधित्व करता है तथा  “बुद्ध शाक्यमुनि” और “ध्यानी बुद्ध  अमोघसिद्धी” की विशेषताओं को प्रदर्शित करती है।

यह मुद्रा उग्र वज्र के पांच तत्वों, अर्थात् वायु, जल, अग्नि, पृथ्वी, और धातु के प्रतीक को दर्शाती है। इस मुद्रा में बायें हाथ की तर्जनी को दायीं मुट्ठी  में मोड़कर, दायें हाथ की तर्जनी के ऊपरी भाग से दायीं तर्जनी को छूते (या चारों ओर घूमाते) हुए किया जाता हैं।

READ THIS

Categories: