MANUSMRITI PDF – मनुस्मृति गीता प्रेस गोरखपुर पीडीऍफ़ डाउनलोड – मनुस्मृति, सनातन धर्म ( हिन्दू धर्म ) की सबसे प्राचीन पुस्तक में एक है मनुस्मृति जिसका 1776 में संस्कृत से अंग्रेजी में अनुवाद होने वाला भी धर्म ग्रन्थ भी कहा जाता है मनुस्मृति में कुल 12 अध्याय हैं जिनमें 2684 श्लोक हैं। कुछ संस्करणों में श्लोकों की संख्या 2964 है।
समाज को बेहतर बनाने हेतु एंव संचालन हेतु जो व्यस्थाए बनी है उन सभी का संग्रह माना जाता है – मनुस्मृति इस तरह से कह सकते है – मनुस्मृति मानव समाज के कल्याण हेतु बना प्रथम संविधान है न्याय व्यस्था बनाने हेतु मनुस्मृति न्याय शास्त्र भी है
मनुस्मृति हिन्दू धर्म के वेद के अनुकूल माना जाता है वेदों की कानून व्यस्था और न्याय व्यस्था को कर्तव्य व्यस्था भी कहा जाता है इन्ही वेदों को आधार बनाकर मनु ने सरल और आसान भाषा में मनुस्मृति पुस्तक का निर्माण किया है वैदिक दर्शन में संविधान या कानून का नाम ही धर्मशास्त्र है।
महर्षि मनु कहते है- धर्मो रक्षति रक्षित:। अर्थात जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। यदि वर्तमान संदर्भ में कहें तो जो कानून की रक्षा करता है कानून उसकी रक्षा करता है। कानून सबके लिए अनिवार्य तथा समान होता है।
मनुस्मृति के श्लोक अर्थ सहित
अगर मनुस्मृति के श्लोक अर्थ सहित पीडीऍफ़ डाउनलोड करना चाहते है तो सबसे आखिर में पीडीऍफ़ डाउनलोड लिंक शेयर किया गया है आगे मनुस्मृति के श्लोक अर्थ सहित पढ़े –
अकामस्य किया काचिद् दृश्यते नेह कहिंचित् । यद्यद्धि कुरुते किञ्चितत्तत्तत्कामस्य चेष्टितम्।।
अर्थ : इस जगत् में कभी भी बिना इच्छा के कोई भी जया या कर्म सम्पन्न होता दिखाई नहीं देता है , क्योंकि मनुष्य जो जो कर्म करता है , वह कर्म उसकी इच्छा की ही चेष्टा का परिणाम है – ऐसा मानना चाहिये ।
वेदोऽखिलो धर्ममूलं स्मृतिशीले च तद्विराम् । आचारश्चैव साधूनामात्मस्तुष्टिरेव च ।।
अर्थ : सम्पूर्ण वैदिक वाङ्मय , वेदज्ञाताओं मनु आदि के स्मृति ग्रन्थ तथा उनका शिष्ट व्यवहार , महापुरुषों के सत्याचरण , अपने मन की प्रसन्नता – ये सभी धर्म के प्रमाण रूप में ग्रहण करने चाहिए ।
यः कश्चित्कस्यचिद्धर्मो मनुना परिकीर्तितः । स सर्वोऽभिहितो वेदे सर्वज्ञानमयो हि सः।।
अर्थ : मनु ने जिन सम्पूर्ण चारों वर्गों के गुणस्वभावादि धर्मों का उल्लेख किया है। वे सब वेदों में कहे गये है, क्योंकि भगवान मनु समस्त वेदों के अर्थ ज्ञाता है ।
मनुस्मृति के श्लोक
श्रुतिस्मृत्युदितं धर्ममनुतिठन् हि मानवः । इह कीर्तिमवाप्नोति प्रेत्य चानुत्तमं सुखम।।
अर्थ : मनुष्य वेदों व स्मृतियों में कहे गये धर्म का सेवन करते हुए संसार में निर्मल कीर्ति प्राप्त करता है तथा मृत्यु के पश्चात् परलोक में परमानन्द को अधिगत कर लेता है ।
एतयर्चा विसंयुक्तः काले न कियया स्वया । ब्रह्मक्षत्रियविड्योनिर्गर्हणां जाति साधुषु ।।
अर्थ : इस गायत्री महामन्त्र के जप से और अपने सदाचारादि कर्तव्यों से विरहित हुआ ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य सज्जनों में निन्दा को प्राप्त करता है ।
मनुस्मृति क्या कहती है
राजा को विस्तारवादी नीति को अपनाना चाहिए। जो जन्म से शूद्र होते हैं, कर्म के आधार पर द्विज कहलाते हैं। न किसी को अपना जूठा पदार्थ दे और न किसी के भोजन के बीच आप खावे, न अधिक भोजन करे और न भोजन किये पश्चात हाथ-मुंह धोये बिना कहीं इधर-उधर जाये।
अनुमति (= मारने की आज्ञा) देने, मांस के काटने, पशु आदि के मारने, उनको मारने के लिए लेने और बेचने, मांस के पकाने, परोसने और खाने वाले – ये आठों प्रकार के मनुष्य घातक, हिंसक अर्थात् ये सब एक समान पापी हैं।
एक लड़की हमेशा अपने पिता के संरक्षण में रहनी चाहिए, शादी के बाद पति उसका संरक्षक होना चाहिए पति की मौत के बाद उसे अपने बच्चों की दया पर निर्भर रहना चाहिए किसी भी स्थिति में एक महिला आज़ाद नहीं हो सकती।” मनुस्मृति के पांचवें अध्याय के 148वें श्लोक में ये बात लिखी है। ये महिलाओं के बारे में मनुस्मृति की राय साफ़ तौर पर बताती है।
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