BAUDH DHARM TRIRATNA बौद्ध धर्म के त्रिरत्न क्या है BAUDH DHARM KE TRIRATNA KAUN KAUN SE HAIN BAUDH DHARM KE TRIRATNA KA KYA ABHIPRAY HAI
त्रिरत्न बौद्ध के 3 घटक जिसे त्रिविद्य, त्रिगुण शरण भी कहते हैं। जिसमें पारस्परिक रूप से महान दया से प्रेरित बोधिचित्त जनित, सभी संवेदनशील प्राणियों के लाभ के लिए सहज इच्छा से बुद्धत्व प्राप्त करने वाले को बुद्धत्व कहा जाता है।
BAUDH DHARM KE TRIRATNA KAUN KAUN SE HAIN
READ HERE BAUDH DHARM KE TRIRATNA KAUN KAUN SE HAIN ? – बौद्ध धर्म के त्रिरत्न – बुद्ध, धम्म, और संघ है, जिसका अर्थ है “तीन रत्न”। इन त्रिरत्नों पर ही बौद्ध धर्म आधारित है बुद्ध ने अपने शिष्यों को सांसारिक सुख और सख्त संयम और तपस्या के दो चरण से बचने की सलाह दी और मध्यम मार्ग अपनाने का निर्देश दिया।
जिसमें बुद्ध के अनुसार तीन स्वर्णिम मार्ग है-पहला अष्टांग योग, दूसरा त्रिरत्न और तीसरा अष्टांगिक मार्ग। बौद्ध धर्म के त्रिरत्न बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे बौद्ध धम्म की संरचनाओं का समर्थन करते हैं। त्रिरत्न बौद्ध धर्म के सबसे महत्वपूर्ण अंग है।
बौद्ध धर्म में त्रिरत्न क्या इंगित करता है
यहाँ पढ़े बौद्ध धर्म में त्रिरत्न क्या इंगित करता है ? – त्रिरत्न का उच्चारण मतलब भगवान बुद्ध की पूजा । जो बुद्ध, धम्म और संघ को इंगित करता है। मतलब सम्मत ज्ञान, सम्यक दृष्टि और सम्यक चरित्र ।
जिसमें सत्य, अहिंसा, दया, सदाचार, मानवता, शालीनता, प्रेम करुणा, क्षमा, सद्गुण हो। लेकिन समय के साथ त्रिरत्न को शिव के त्रिशूल के साथ जोड़कर देखा जाने लगा। त्रिरत्न जिसे बुद्ध धम्म और संघ कहा गया है। ब्राह्मणो ने उसे शिव के हाथ में थमा के हिंसक शस्त्र का रूप दे दिया।
बौद्ध धर्म के त्रिरत्न क्या है BAUDH DHARM TRIRATNA
यहाँ पढ़े बौद्ध धर्म के त्रिरत्न क्या है BAUDH DHARM TRIRATNA के बारें में जानकारी – बुद्ध के विचारो में बुद्ध, धम्म और संघ को बहुत ज्यादा महत्व है। बुद्ध यानी कोई इंसान नहीं यह एक प्रज्ञा की सर्वोच्च स्थिति है।
धम्म यानी मानव के दुःख मुक्ति का मार्ग है। संघ माने मनुष्य के मुक्ति का मार्ग यानी धम्म का प्रचार प्रसार करने वाला समूह। बुद्धिष्ट कला और स्थापत्य में, इस महान परम्परा को चिन्हित करने का प्रयास किया गया।
बुद्ध, धम्म और संघ आपस में अभिन्न है। अलग होकर भी अलग नहीं है। बुद्ध, धम्म और संघ के अटूट संबंध को प्रतीकात्मक रूप से अनेकों बुद्धिष्ट संरचना में दिखाया गया। बहुत ही रोचक है की इन तीनो रत्नो को एक वज्र के ऊपर खड़ा किया जिसके नीचे धम्म चक्र भी दिखाया गया है।
बौद्ध धर्म के त्रिरत्न | प्रमाण | संदेह-उत्तर
शिव और वैष्णव यह दोनो धाराएं बुद्धोत्तर है। महायान के बोधिसत्व अवलोकितेश्वर, वज्रपाणी और पद्मपाणी संकल्पनाओं को बड़ी होशियारी से शिव और विष्णु बनाया गया। गौतम बुद्ध के पहले 27 बुद्ध और थें।
बुद्ध धम्म के पतन के बाद इस चिन्ह की चोरी कर या फिर उससे प्रेरित होकर शंकर या शिव का त्रिशुल बनाया गया। जिसका उपयोग हिंसा के लिए किया गया । शंकराचार्य ने बौद्धिक विकास पर कब्जा करके वैदिक धर्म की स्थापना किया, जिसका कोई पुरातात्विक प्रमाण नहीं है।
लेकिन इसका प्रमाण समय-समय पर न्यूज़पेपर और कथनी में मिलते रहती है और आज भी बुद्धिस्ट परंपरा का प्रयोग करते हैं बौद्ध दर्शन में मन और मानसिक स्थिति दर्शन के सभी गैर – भौतिकवादी भारतीय विद्यालयों का एक मौलिक विचार है।
चाहे वे रूढ़िवादी हो जो वेदों का पालन करते हो या बौद्ध और जैन का पालन करने वाले हो। बौद्ध परंपरा में योग, ध्यान की तकनीकों का उद्देश्य एक सचेत अवस्था प्राप्त करना है।
जिसमें धारणा और कल्पना जैसे सामान्य मानसिक गतिविधियां निलंबित हो जाती हैं। बुद्ध प्रमाण शिलालेखों एवं पुरातत्विक विभागों में सुरक्षित है। इतिहास को तोड़ मरोड़ कर बदला जा सकता है, मिटाया नहीं जा सकता। भारत के हर कोणे में बुद्ध ही बुद्ध है!
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