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38 MANGAL KARMA IN HINDI - तथागत बुद्ध के 38 मंगलकर्म

38 MANGAL KARMA IN HINDI – तथागत बुद्ध के 38 मंगलकर्म

38 MANGAL KARMA IN HINDI तथागत बुद्ध के 38 मंगलकर्म 38 महामंगलसुत्त /मंगलसूत्त/मंगलसूत्र जो बुद्ध ने दिए इन हिंदी mahamangal sut name bataiye

तथागत बुद्ध ने 38 प्रकार के मंगल कर्म बताये है जो महामंगलसुत के नाम से भी जाना जाता है। बुद्ध ने उपदेशो में कहा कुछ लोग मुझसे पूछने आए कि हमारा सही मंगल किस बात में है। जीवन में कई तरह के लोग हैं विचार है अच्छे बुरे निष्ठर निर्दई दयावान शीलगुण ज्ञानी बुद्धिस्ट है।

इन सबके बीच कई दुविधाएं, सुविधाएं, जिज्ञासा सुख-दुख पतझड़ सच झूठ छोटा बड़ा पाप पुण्य कई उलझन है। जो हमारे जीवन को सदाचार, शीलगण और सही मार्ग पर ले जाता है। इस तरह समझाते समझाते अंतिम मंगल कर्म पर पहुंचे तो कहा- फुट्ठस्स लोकधम्मेहि, चित्तम् यस्स न कम्पति, अशोकं विरजं खेमं, एतं मंगलसुतमं।।

38 MANGAL KARMA IN HINDI - तथागत बुद्ध के 38 मंगलकर्म
38 MANGAL KARMA IN HINDI तथागत बुद्ध के 38 मंगलकर्म

तथागत बुद्ध के 38 मंगलकर्म – 38 MANGAL KARMA IN HINDI

यहाँ पढ़े तथागत बुद्ध के 38 मंगलकर्म 38 MANGAL KARMA IN HINDI – 38 उपदेशों को करने वाले सदा विजय होते हैं। उनका जीवन सद्भाव सद्गुण तथा कल्याणकारी होता है। दुख और परेशानियां दूर होती है। पढ़े – बुद्ध के 38 मंगलकर्म कौन कौन से हैं – महामंगलसुत्त

  • शीलवानो की संगति करना।
  • मुर्खो की संगति ना करना।
  • बुद्धिमानों की संगति करना।
  • अनुकूल स्थानों में निवास करना।
  • कुशल कर्मों का संचय करना।
  • कुशल कर्मों में लग जाना।
  • अधिकतम ज्ञान का संचय करना।
  • तकनीकी विद्या अर्थात शिल्प सीखना।
  • व्यवहार कुशल एवं विनम्र होना।
  • विवेकवान होना।
  • सुंदर वक्ता होना।
  • माता पिता की सेवा करना।
  • पुत्र-पुत्री-स्त्री का पालन पोषण करना।
  • अकुशल कर्मों को ना करना।
  • बिना किसी अपेक्षाके दान देना।
  • धम्म का आचरण करना।
  • सगे सम्बंधियों का आदर सत्कार करना।
  • कल्याणकारी कार्य करना।
  • मन, शरीर तथा वचन से परपीड़क कार्य ना करना।
  • नशीली पदार्थों का सेवन ना करना।
  • धम्म के कार्यों में तत्पर रहना।
  • गौरवशाली व्यक्तित्व बनाए रखना।
  • विनम्रता बनाए रखना।
  • पूर्ण रूप से संतुष्ट होना अर्थात तृप्त होना।
  • कृतज्ञता कायम रखना।
  • समय समय पर धम्म चर्चा करना ।
  • क्षमाशील होना।
  • आज्ञाकारी होना।
  • भिक्षुओ, शीलवान लोगों का दर्शन करना।
  • मन को एकाग्र करना।
  • मन को निर्मल करना।
  • सतत जागरूकता बनाए रखना ।
  • पाँच शीलों का पालन करना।
  • चार आर्य सत्यों का दर्शन करना ।
  • आर्य अष्टांगिक मार्ग पर चलना।
  • निर्वाण का साक्षात्कार करना।
  • लोक धम्म लाभ हानि, यश अपयश, सुख-दुख,जय-पराजय से विचलित ना होना ।
  • शोक रहित निर्मल एवं निर्भय होना।

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