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BUDDHA PURNIMA

BUDDHA PURNIMA – बुद्ध पूर्णिमा का इतिहास

BUDDHA PURNIMA बुद्ध पूर्णिमा का इतिहास बुद्ध पूर्णिमा क्या होता है गौतम बुद्ध का जन्म कब हुआ था बुध का जन्म कब और कहां हुआ था ?

भगवान बुद्ध का धम्मचक्र इस तरह चला कि बौद्ध धम्म दुनिया का प्रथम विश्व धर्म है। यह भारत के लिए गर्व की बात है कि भारत में उत्पन्न एक धम्म सारी दुनिया पर आच्छादित हो गया है। आइए और विस्तार से जानते है

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बुद्ध पूर्णिमा का इतिहास

यहाँ जानिये बुद्ध पूर्णिमा का इतिहास ? – बुद्ध पूर्णिमा मनाने की परंपरा आधुनिक समय की नहीं, बल्कि बहुत प्राचीन है । दक्षिण भारत भी इस पर्व से अछूता नहीं रहा। वैशाख पूर्णिमा के दिन बहुत धूमधाम से रथ यात्रा निकाली जाने की परंपरा रही।

वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध को पूर्ण ज्ञान मिला था। यह त्योहार बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान और मृत्यु का स्मरण कराता है। बुद्ध पूर्णिमा तथा बुद्ध धम्म स्थानीय, बल्कि वैश्विक धम्म है।

बौद्घ देशों के बौद्ध श्रद्धालु प्रतिदिन सुबह उठते ही भारत की ओर हाथ उठा कर तीन बार वन्दना करते हैं। – “बुद्धं शरणं गच्छामि” “धम्मं शरणं गच्छामि” “संघं शरणं गच्छामि”

बौद्ध धर्म की मूल भावना को बताने वाले ये तीन शब्द गौतम बुद्ध की शरण में जाने का अर्थ रखते हैं। बुद्ध को जानने के लिए उनकी शिक्षाओं की शरण लेना जरूरी है। भगवान बुद्ध की भारत भूमि को नमन करते हैं।

बुद्ध पूर्णिमा न केवल भारत का बल्कि सम्पूर्ण दक्षिण-पूर्व एशिया का एक महापर्व है। श्रीलंका, थाईलैंड, मलेशिया, म्यांमार, लाओस, इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा, जापान, कोरिया, वियतनाम इत्यादि देशों में इस दिन महान उत्सव होता है। थाईलैंड में बुद्ध पूर्णिमा को विशाखा पूजा कहते हैं। श्रीलंका में इस तिथि को वेसाक दिवस कहते हैं। बुद्ध पूर्णिमा त्रिविध, त्रिगुण पावन पर्व है।

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READ HERE ABOUT BUDDHA PURNIMA – वैशाख (वैसाक) पूर्णिमा सम्यक सम्बुद्ध भगवान बुद्ध के जीवन की तीन महत्वपूर्ण घटनाओं से संबंधित है। बुद्ध का जन्म- 563 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा के दिन तथागत बुद्ध का कपिलवस्तु गणराज्य के लुम्बिनी ,नेपाल (वन में शालवृक्ष) के नीचे जन्म हुआ था।

बुद्धत्व प्राप्ति-528 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा के दिन 35 वर्ष की आयु में बोधगया में बोधिवृक्ष पीपल के नीचे शाक्यमुनि को बोधित्व ज्ञान की प्राप्ति हुआ। महापरिनिर्वाण-483 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा के दिन ही बुद्ध को कुशीनगर में शालवृक्ष के नीचे महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई।

संसार में इस प्रकार की तीन घटनाएं किसी भी महान पुरूष के साथ एक ही दिन नहीं घटी, इन तीन घटनाओं के कारण ही बुद्ध पूर्णिमा को त्रिविध या त्रिगुण पावन पर्व कहते है। यह त्योहार बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान और मृत्यु का स्मरण कराता है इस प्रकार बुद्ध पूर्णिमा पवित्र है और मंगलकारी है ।

बुद्ध पूर्णिमा आदेश

बुद्ध पूर्णिमा के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र संघ का आदेश कहता है: नवम्बर 1998 में श्रीलंका में आयोजित अन्तरराष्ट्रीय बौद्ध संगोष्ठी में व्यक्त आशा कि प्रत्येक वर्ष मई माह में घटित होने वाली पूर्णिमा को अन्तरराष्ट्रीय मान्यता मिले, तथा विशेषकर, संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालयों तथा संयुक्त राष्ट्र के कार्यालयों में, का संज्ञान लेते हुए यह मान्यता आत्मसात करते हुए कि प्रत्येक वर्ष मई माह में घटित होने वाली पूर्णिमा बौद्धों के लिए परम पावन तिथि है

जिस दिन बौद्ध समुदाय बुद्ध का जन्म, सम्बोधि एवं महापरिनिर्वाण मनाते हैं यह स्वीकार करते हुए कि बुद्ध धम्म विश्व के प्राचीन धर्मो में से एक, विगत दो हजार पांच सौ वर्षों से, तथा अभी तक मानव की आध्यात्मिकता निर्मित करने में योगदान दे रहा है

संयुक्त राष्ट्र के कार्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय मान्यता संविधानीकृत करते हुए, संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालयों तथा संयुक्त राष्ट्र के कार्यालयों, संयुक्त राष्ट्र के सम्बन्धित अधिकारियों की सहमति तथा सहमति देने के इच्छुक अन्य स्थाई अभियानों की सहमति से तथा संयुक्त राष्ट्र के मूल्यों में हस्तक्षेप के बिना, वेसाक दिवस को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मानने का, सभी सम्भव व्यवस्था करने का संकल्प करती है।”

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